वात्सल्य रस के 10 उदाहरण
1. तुलसीदास जी की रचना से:
“जौ तुम्हारे भक्त प्रिय जानकी। तो मम मोहन बचन निभानी।
2. सूरदास जी की रचना से:
“जसोदा मैया मैं तो गोरी गोरी, मेरा सांवरा रंग सांवरा।
3. कबीरदास जी की रचना से:
“बैठे हैं गुरु शिष्य समानी। दोनों के मन की एक बानी।
4. रहीमदास जी की रचना से:
“मात-पिता गुरु पूज्य, इनसे बढ़कर नहिं कोई।
5. बिहारीलाल जी की रचना से:
“नैन न भरे मोहन के मारे, मोहन नैन न भरे।
6. अमीर खुसरो जी की रचना से:
“तेरे बिन सूना सूना लगता है, जीया मेरा।
7. मलिक मुहम्मद जायसी जी की रचना से:
“प्रेम तो दरद है, दाग़ है, आग है, प्यास है।
8. रामचरितमानस से:
“कौशल्या हितकारी नारी। राम प्रसव करु जिय जारी।
9. महाभारत से:
“माता कुन्ती ने युधिष्ठिर से कहा:
“हे पुत्र, सदा सत्य बोलो और धर्म का पालन करो।
10. गीता से:
“श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा:
“हे अर्जुन, तू अपने कर्तव्य का पालन कर।
ये वात्सल्य रस के कुछ उदाहरण हैं। वात्सल्य रस में माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति प्रेम, बच्चों का अपने माता-पिता के प्रति प्रेम, गुरु का अपने शिष्यों के प्रति प्रेम और शिष्यों का अपने गुरु के प्रति प्रेम का वर्णन होता है।
यह रस हमें सिखाता है कि हमें अपने माता-पिता, गुरु और बच्चों के प्रति प्रेम और सम्मान करना चाहिए।